रावली टॉडगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य

तीन जिलों का त्रिवेणी धाम रावली टॉडगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य के नाम से मशहूर यह अभ्यारण्य राजसमन्दपाली और अजमेर  जिलों में पसरा हुआ है। इस भू-भाग में 55 मीटर ऊँचाई से गिरने वाला मनोरम भील बेरी झरना है जो बरसात के कई माह बाद तक अविराम झरता रहकर सुकून देता है। अभ्यारण्य में घनी हरियाली के बीच कई दर्शनीय स्थल हैं जो जंगल में मंगल का साक्षात आनंद प्रदान करते हैं। सुकून का समन्दर लहराता है यहाँ कुल जमा 475 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पसरे हुए इस पहाड़ी जंगल में वह सब कुछ है जो तन-मन को यादगार एवं अपूर्व सुकून देने वाला है। 
प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप ने इन्हीं सघन हरियाली भरी वादियोंघाटियों और गुफाओं को विहार स्थल बनाया। प्रतिध्वनित होती हैं प्रताप की शौर्य गाथाएँ यहां का जर्रा-जर्रा उस ऎतिहासिक दिवेर के युद्ध का साक्षी है जिसमें महाराणा प्रताप ने अपनी फौज का शौर्य-पराक्रम दिखाते हुए मुगलों को धूल चटा दी थी। इस मायने में यह पूरा इलाका अपने भीतर इतिहास की कई कही-अनकही गाथाओं को भी समेटे हुए है।  वन विभाग ने इस अभ्यारण्य को मौलिकता से ओत-प्रोत नैसर्गिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया है और अब इसके बारे में आम लोगों को जागरुक करनेदेशी-विदेशी सैलानियों में इसके प्रति आकर्षण जगाने के लिए खास प्रयास आरंभ किए गए हैं। 
वनदेवी की गोद में अलौकिक आनंद यहां दूधालेश्वर महादेव का प्राचीन शिवालय है जहाँ भूगर्भ से साल भर अहर्निश जल धाराएँ हमेशा समान वेग से फूटती रहती हैं।  
क्षेत्र में दिवेर इको स्थलगोरम घाट ट्रेन सफारीबगड़ी इको स्थलदिवेर विजय स्मारकयुद्ध स्मारकप्राकृतिक रमणीयता से भरे-पूरे गांव छापलीनवलीपुगइकोट्रेकगोकुलगढ़ व्यू पाइंट आदि विशिष्ट स्थल हैं जो अपने आप में खास आकर्षण जगाने के साथ ही मन मोह लेने वाले हैं।  मैराथन ऑफ मेवाड़ की परिकल्पना यहां मूर्त रूप लेती प्रतीत होती है। इतिहास बाँचता है यह दस्तावेज यहीं पर अंग्रेजों के जमाने में बना रावली इको स्थल है जहाँ सन् 1932 से अपनी तरह का अद्वितीय एवं अनूठा रेस्ट हाउस है जिसमें देश और दुनिया की बड़ी-बड़ी हस्तियों से लेकर प्रकृतिप्रेमियोंशोधार्थियोंप्रकृतिप्रेमियों और विशिष्टजनों के अनुभवों का अंकन विजिट बुक में है जिसे अभी तक अच्छी तरह संजो कर रखा गया है। इसमें यह तक अंकित है कि किस जमाने में कौन आयाकिसने क्या देखा और किसका शिकार किया तथा कैसा अनुभव हुआ। इन अनुभवों से भरी विजिट बुक के हर पन्ने को लेमिनेटेड करवा कर यादगार स्वरूप दिया गया है।  यह ऎतिहासिक दस्तावेज इस अभ्यारण्य की अमूल्य धरोहर के रूप में संजोया हुआ है। 
 दिवेर युद्ध की वर्षगांठ पर आगामी 26 अक्टूबर को इको टूरिज्म को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष कार्यक्रम हाथ में लिया गया है। इसके अन्तर्गत विभिन्न गतिविधियों का आयोजन कर देशी-विदेशी सैलानियों को इस अनूठे पर्यटन स्थल से परिचित कराकर इसे भारतवर्ष के पर्यटन विकास की मुख्य धारा में लाने के बहुआयामी प्रयासों को गति दी जा रही है। 
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