मरूस्‍थलीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केन्‍द्र


मरूस्‍थलीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केन्‍द्र, (डीएमआरसी) स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंञालय, भारत सकार के अंतर्गत जैव चिकित्‍सकीय अनुसंधान के लिए शीर्ष स्‍वायत संगठन, ‘भारतीय आयु‍र्विज्ञान अनुसंधान परिषद’ (आईसीएमआर) का एक स्‍थायी संस्‍थान है। क्ष्‍ोञ में व्‍याप्‍त स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को समझने हेतु एवं उभरती स्‍वास्‍थ्‍य आवश्‍यकताओं की पूर्ति हेतु, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा राजस्‍थान के जोधपुर शहर में इस केन्‍द्र की स्‍थापना की गई, जो देश की मरूस्‍थलीय क्षेञ की स्‍वास्‍थ्‍य अनुसंधानिक आवश्‍यकताओं को पूरा कर सके।
डीएमआरसी की स्‍थापना 27 जून 1984 को हुई। केन्‍द्र ने जोधपुर, जयपुर ता बीकानेर स्थित अपनी तीन इकाइयों के साथ कार्य करना प्रारम्‍भ किया। जोधपुर जिले को मरूस्‍थल, जयपुर को गैर मरूस्‍थल तथा बीकानेर को नहर द्वारा सिंचित जिलेका प्रतिरूप लिया गया। एक व्‍यापक प्रारम्भिक स्‍वास्‍थ्‍य सर्वेक्षण किया गया जिससे क्षेञ की स्‍वास्‍थ्‍य तथा अस्‍वस्‍थता से जुडे कारकों की रूपरेखा तैयार की जा सके। प्रारम्भिक सर्वेक्ष्‍ाण की समाप्तिके पश्‍चात, वर्ष 1992 में तीनों इकाइयां मिलकर जोधपुर में एकरूप हो गई। तब से यह केन्‍द्र इस क्ष्‍ोञ की मुख्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं के शोध व अनुसंधान कार्यो, जैसे मलेरिया, कुपोषण, सिलीकोसिस, तपेदिक, अफीम मुकित, रोगवाहक पारिस्थितिकी अध्‍ययन, कीटनाशकों की प्रतिरोधकता, चिकित्‍सकीय उपयोग के पौधे आदि के अध्‍ययन में जुटा हुआ है।
अनुसंधान में अपने अस्तित्‍व के दो दशकों की उत्कृष्ट तकनीकी याञा के साथ यह केन्‍द्र, मरू स्वास्‍थ्‍य हेतु एक राष्ट्रीय संस्‍थान का दर्जा प्राप्‍त करने के लिए दरवाजे पर खडा दस्‍तक दे रहा है। केन्‍द्र के कतिपय कार्य क्षैत्र, यथा मानव क्रिया विज्ञान, भौगोलिक जीनॉमिकस, पोषण की बिमारियां, प्रचालन अनुसंधान, रोगवाहक बिमारिया, चिकित्‍सकीय एवं कीटनाशक पौधे, संचारी रोग, असंचारी रोग, उन्‍्नत कार्यात्‍मक जैव उपादान, नैनों बायो इण्टरफेस, मरू वातावरण से संबंध स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं, सूखा, बाढ, अफीम सेवन, निर्जलीकरण, पानी के द्वारा फैलने वाले रोग, रेडियों समस्‍थानिक उपयोग, एनबीसी आंशकाएं एवं विपदा उतरोतर प्रबन्‍धन, केन्‍द्र को वह धरातल प्रदान करते है, जहॉ से केन्‍द्र, राष्ट्रीय व अन्‍तर्राष्ट्रीय स्‍तर पर मरू स्‍वास्‍थ्‍य के लिए एक अग्रणी भूमिका निभा सकता है। क्‍योंकि मरू क्षेञ पृथ्‍वी के धरातल का लगभग एक बटा सातवां हिस्‍सा है। भारत में तो यह समुचित धरा क्षेञ का 8.7 प्रतिशत है।
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