चाँद बावड़ी

राजस्थान में जयपुर से 95 किमी दूरी पर स्थित आभानेरी गाँव में विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी (सीढ़ियों वाला गहरा कुँआ) स्थित है, जिसका नाम है "चाँद बावड़ी"।

चाँद बावड़ी का निर्माण 9वीं शताब्दी में राजा चाँद ने किया था। इस विशालतम बावड़ी के प्रमुख आकर्षण इस प्रकार हैं
1) यह बावड़ी चारों तरफ़ से 35 मीटर चौड़ी है।
2) ऊपर से नीचे तक पक्की बनी सीढ़ियों के कारण पानी का स्तर चाहे जो भी हो हमेशा आसानी से पानी भरा जा सकता है।
3) चाँद बावड़ी, 100 फ़ीट गहरी, 13 मंजिला और 3500 सीढ़ियों युक्त है।
4) यह बावड़ी प्रसिद्ध हर्षत माता मन्दिर के सामने स्थित है।
5) यह विश्व की सबसे गहरी और बड़ी बावड़ी है। 



आभानेरी गाँव, रोमांचक बावड़ियों और हर्षत माता के मन्दिर के लिये प्रसिद्ध है। आभानेरी का शुरुआती नाम था "आभा नगरी" (अर्थात चमकने वाला शहर), लेकिन कालान्तर में भाषा के अपभ्रंश की वजह से इसका नाम धीरे-धीरे आभानेरी बन गया। ऐसी मान्यता है कि आभानेरी को राजा चाँद ने बसाया था. 

चांद बावड़ी नक्काशी का बेजोड़ नमूना


दौसा जिले के आभानेरी गांव में चांद बावडी और हर्षत माता का मंदिर पत्थरों पर नक्काशी का एक बेजोड़ नमूना भी है। 

 चांद बावड़ी का निर्माण भी राजा चांद ने 8 या 9वीं शताब्दी में कराया था। इसे अंधेरे उजाले की बावड़ी भी कहा जाता है। चांदनी रात में यह बावड़ी एकदम सफेद दिखायी देती है।

तीन मंजिली इस बावड़ी में राजा के लिए नृत्य कक्ष तथा गुप्त सुरंग बनी हुई है। इसके ऊपरी भाग में निर्मित परवर्ती कालीन मंडप इस बावड़ी के लंबे समय तक उपयोग में रहने का प्रमाण देती है। बावड़ी की तह तक पहुंचने के लिए करीब 1300 सीढि़यां बनाई गई है जो अद्भुत कला का उदाहरण पेश करती है। यह वर्गाकार बावड़ी चारों ओर स्तंभयुक्त बरामदों से घिरी हुई है। यह 19.8 फुट गहरी है जिसमें नीचे तक जाने के लिए 13 सोपान बने हुए है।

भुलभुल्लैया के रूप में बनी इसकी सीढि़यों के बारे में कहा जाता है कि कोई व्यक्ति जिस सीढ़ी से नीचे उतरता है वह वापस कभी उसी सीढ़ी से ऊपर नहीं आ पाता है। बावड़ी की सबसे निचली मंजिल पर बने दो ताखों में स्थित गणेश एवं महिसासुर मर्दिनी की भव्य प्रतिमाएं इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है।

इस बावड़ी में एक सुरंग भी है जिसकी लम्बाई लगभग 17 कि.मी. है जो पास ही स्थित गांव भांडारेज में निकलती है। कहा जाता है कि युद्ध के समय राजा एवं उनके सैनिकों द्वारा इस सुरंग का इस्तेमाल किया जाता था। करीब पांच साल पहले इसकी खुदाई एवं जीर्णोद्धार का कार्य कराया गया था। उसमें राजा चांद का उल्लेख किया हुआ एक शिलालेख भी मिला था।
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