मीरा सम्प्रादाय

मीरा सम्प्रादाय : मीरा को राजस्थान की राधा भी कहा जाता है .जनम मारवाड़ के कुडकी गाँव में हुआ था इनके पिता रतनसिंह मवाद के शासक दुदा जी के चचौथे पुत्र थे . अपने पिता की इकलोती संतान थी. छोटी अवस्था में ही माता का देहांत हो गया था ललान पोषण दादी ने किया . दादा दादी दोनों कर्षण भक्त थे इनका जनम 1499 में माना जाता है . इनका विवाह राणा  सांगा के पाटवी पुत्र भोजराज के साथ हुआ था . विवाह के दो तीन साल बाद ही पति का देहांत हो गया . 1530 में ससुर राणा सांगा तथा पिता  रतनसिंह का भी निधन हो गया .मीरा जी ने घर छोड़ दिया और वृन्दावन में चली गयी . वन्ही पर भगवन की भक्ति में खुद को लीनं कर लिया . 1540 में मीरा ने निर्वाण को प्राप्त किया.
मीरा से सम्बंधित साहित्य:
-    पदावली : मीरा द्वारा रचित .
-    नरसी रो मायरो : रतन खाती
-    राग सोरठ  और राग गोविन्द
-    सत्य भामाजी नु रुसनु : वल्लभ
-    गीत गोविन्द की टीका : राणा कुम्भा

मीरा के गीत :
-    जोगी मत जा मत जा , पाव पडू में तेरे
-    असी लगन लगे . कान्हा तू जासी.
-    माई में तो राम रतन धन पायो .

-    रणजी महने या बदनामी लागे मीठी .
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