रामानुज साम्प्रदाय : इसे रामस्नेही सम्प्रदाय भी कहते है इसके
जन्मदाता रामकरण जी थे जिनका जनम १७१८ में जयपुर में सुरसेन गाँव में हुआ था .
युवावस्था में जयपुर के महामंत्री रहे थे. 24 साल की आयु में थे तब पिता जी का
देहांत हो गया था . 36 साल की आयु में इन्होने सन्यास ले लिया था मेड़ता के पास
दाताराम गाँव में गुरु कर्प्याराम जी ने इन्हें दीक्षा दी तथा इनका नाम रामचंरण कर
दिया था . ज्ञानप्राप्ति के लिए वृन्दावन गये . वंहा से लोटने के बाद भीलवाडा में
इन्होने अपने ज्ञान का प्रसार किया . अंत में 80 साल की अवस्था में शाहपुरा में
इनका देहांत हो गया . भीलवाडा में यह दस साल रहे जन्हा निर्गुण उपासना था जन
साधारण के प्रति प्रेम का प्रचार किया. मूर्तिपूजा के विरोध के कारण इनका प्रतिरोध
हुआ था हत्या का भी प्रयास हुआ . यंहा ताकि की उदयपुर के महाराणा को इनकी शिकायत
भी की. बाद में यह भीलवाडा छोड़ के शाहपुरा आ गया जन्हा के रजा ने इनको सम्मान के
साथ रखा . इनके माथो को रामद्रारा भी कहते है .
इनके विचार निमंलिखीत थे
- यह निर्गुण निराकार
ब्रम्हा की उपासना करते थे
- इनके अनुयायी या
चेले नंगे भी रहते थे और कुछ तुम्बा , लंगोट, चादर माला भी रखते थे .
- यह आजीवन विवाह नहीं
करते .
- चेला रखते समय यह
उसके सर, दाड़ी तथा मुछो के बाल साफ़ करवा देते थे .
- गुरु का प्रथम चेला
ही गुरु के बाद गद्दी पे बैठता था .
- यह रामद्रारा में रह
के कथा पड़ते और हरी भजन करते थे .
- मूर्तिपूजा और अंध
विश्वासों का विरोध करते थे .