दादू पंथ

दादू पंथ :  संत दादू का जन्म जौनपुर में १५४४ में हुआ था इनकी जाति के बारे में अलग अलग मत है . पर इनका लालन पोषण नगर ब्राहम्ण ने किया था इन्हें संत बुद्धानंद ने दीक्षा दी थी . कुछ लोग कमाल को भी दादू का गुरु मानते है  ६१ वर्ष की आयु में १६०५ में इनका देहांत नारायण गाव में हुआ था . वंहा पर इनकी याद में हर वर्ष मेला लगता है 

दादू जी के १५२ शिष्य माने जाते है जिंसमे से ५२ प्रधान है इसलिए दादू पंथ को ५२ स्थंभा भी कहा जाता है यह लोग दादू पंथ से अपना सम्पर्क बनाये रखते हुआ लग हो गये . नागा, खालसा , खाकी और उतराटी इसी पंथ के परिवर्तित रूप है .

दादू कविता में अपने विचार प्रकट करते थे जिन्हें उनके शिष्यों ने संकलित कर लिया. इनकी भाषा में संस्कृत का भी पुट है इनके दर्शन में सूफी विचारधारा का समावेश है उनके उपदेश सरल थे जैसे :
-    संतोष रखना चाहिये
-    जो दिया है सो ही मिलेगा.
-    इच्छा का अंत ही स्वर्ग का मार्ग है .
-    संसार के बन्धनों से मुख होना ही मोक्ष है .
-    बिना गुरु के ज्ञान नहीं मिलता.
-    उपासना , अहिंसा , प्रेम भाव और भक्ति से ही मुक्ति संभव है


मूर्तिपूजा , जातपात , तीर्थयात्रा और जादू टोना में इन्हें विश्वास नहीं था . इन पर कबीर का प्रभाव था . कई भाषाओ के जानकार थे और सरल भाषा ही इनकी लोकप्रियता का कारण थी
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